1. कालीबंगा की सभ्यता - हनुमानगढ़
- इस सभ्यता का विकास घग्घर नदी के किनारे हुआ।
- कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ है- काली चूड़ियॉं।
- इस सभ्यता की खोज अमलानन्द घोष के द्वारा की गई।
- इस सभ्यता का उत्खनन बी0 वी0 लाल एवं वी0 के0 थापड़ के द्वारा किया गया।
- सभ्यता के उत्खनन में हड़प्पा सभ्यता तथा हड़प्पा समकालीन सभ्यता के अवशेष मिले है।
- कालीबंगा सभ्यता मे उत्खनन मे हल से जुते खेत के निशान मिले है।
- इस सभ्यता मे उत्खनन मे जले हुए चावल के साक्ष्य मिले है।
- इस सभ्यता से उत्खनन मे सूती वस्त्र के साक्ष्य मिले है जो कपास उत्पादन के प्रतीक है।
- इस सभ्यता के उत्खनन से मिली अधिकांश वस्तुएॅं कॉंसे की बनी हुई है जो इस सभ्यता के कॉंस्ययुगीन होने का प्रतीक है।
- कालीबंगा सभ्यता में तॉंबे का भी प्रयोग प्रारम्भ हो गया।
- कालीबंगा सभ्यता के निवासी लोहे एवं घोड़े से अपरिचित थे।
- कालीबंगा सभ्यता मे उत्खनन मे मिली सेल खड़ी (घीया पत्थर) की मोहरों से इस सभ्यता मे मातृदेवी की पूजा के साक्ष्य मिले है।
- कालीबंगा सभ्यता मे उत्खनन से गॉंवों से नगरों में विकसित होने के साक्ष्य मिले।
- इस सभ्यता से नगर तीन चरणों में विकसित होने के प्रमाण मिले है।
- इस सभ्यता में पक्की ईटों के बने दुर्ग के अवशेष मिले है।
- इस सभ्यता में नगर के भवन कच्ची ईटों से बने हुए मिले है।
- कालीबंगा सभ्यता में हवन कुण्ड के साक्ष्य मिले है। यज्ञ की वेदियॉं जो इस सभ्यता में यज्ञीय परम्परा बली प्रथा का प्रतीक है।
- 14 कार्बन डेटिंग के अनुसार 2350 ई0 पूर्व से 1750 ई0 पूर्व
- इतिहासकारों के अनुसार - 2500 ई0 पूर्व से 1750 ई0 पूर्व
- आहड़ की सभ्यता आयड़ नदी (बेड़च नदी) के किनारे विकसित हुई है।
- इसे अघाटपुर की सभ्यता भी कहा जाता है।
- स्थानीय क्षेत्र मे इसे धुलकोट की सभ्यता भी कहा जाता है।
- इसे ताम्रवती नगरी भी कहा जाता है।
- इस सभ्यता की खोज अक्षय कीर्ति व्यास के द्वारा की गई।
- इस सभ्यता का उत्खनन पूना विष्वविद्यालय के प्रोफेसर सोकलिया के द्वारा किया गया।
- इस सभ्यता से उत्खनन मे मिट्टी के बने गोरे एवं कोटे मिले है।
- उत्खनन में तॉंबे के बर्तन, हथियार एवं अन्य वस्तुएॅं मिलि है।
- ताम्र के अधिकाधिक प्रयोग के कारण ही इस सभ्यता को ताम्रवती नगरी कहा गया है।
- इस सभ्यता से मिली मोहरें यहॉं के उन्नत व्यापार का प्रतीक है।
- डॉ0 गोपीनाथ वर्मा के अनुसार आहड़ की सभ्यता के उत्तरार्द्व में इस सभ्यता मे लोह संस्कृति का प्रवेश प्रारम्भ हो गया था।
- डॉं0 गोपीनाथ शर्मा के अनुसार इस सभ्यता का समृद्व काल 1900 ई0 पूर्व से 1200 ई0 पूर्व तक का था।
- वर्तमान में इस सभ्यता का एक और महत्वपूर्ण स्थल गिलुण्ड (राजसमन्द) जिले से प्राप्त हुआ है।
- प्रारम्भ में यह सभ्यता मूल रूप से ग्रामीण सभ्यता थी। सभ्यता के उत्तरार्द्व में नगरीय विकास के साक्ष्य मिले है।
- यह सभ्यता जयपुर जिले में बाणगंगा नदी के किनारे विकसित हुई है।
- बैराठ प्राचीन विराट नगर की राजधानी है।
- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पाण्डवों ने अपना अज्ञात वास यही पर व्यतीत किया था।
- इस सभ्यता से अशोक का शिलालेख प्राप्त हुआ है। जो वर्तमान में कलकत्ता संग्रहालय में स्थित है।
- इस सभ्यता से उत्खनन मे 36 मोहरें मिली जिनमें से 28 मोहरें हिन्द यवन शासकों की तथा इन 28 में से 16 मोहरें यूनानी शासक मिनेण्डर की मिली है।
- इस सभ्यता का उत्खनन राजस्थान विष्वविद्यालय के सहयोग से पुरातत्व विभाग के द्वारा किया गया।
- सीकर जिले में कान्तली नदी के किनारे विकसित हुई।
- गणेश्वर की सभ्यता को भारत में (ताम्रयुगीन संस्कृति की जननी) कहा जाता है।
- इस सभ्यता का उत्खनन राज0 वि0 वि0 के सहयोग से पुरातत्व विभाग के द्वारा किया गया।
- इस सभ्यता से उत्खनन में मछली पकड़ने के तांबे के कॉंटे मिले है। जो तत्कालीक समय मे कान्तली नदी में वर्ष भर जल होने का प्रतीक है।
रंगमहल की सभ्यता हनुमानगढ़
पीलीबंगा की सभ्यता हनुमानगढ़
बालाथल की सभ्यता वल्लभनगर, उदयपुर
बागोर भीलवाड़ा
रेड की सभ्यता टोंक
जोधपुरा की सभ्यता जयपुर
नोह की सभ्यता भरतपुर
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ReplyDeleteRajasthan GK Quiz || राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ || Ancient Civilizations of Rajasthan In Hindi
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