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Important Inscriptions, Testimonials and Coins of Rajasthan

राजस्थान के महत्वपूर्ण शिलालेख, प्रशस्तियाॅं एवं सिक्के (Important Inscriptions, Testimonials and Coins of Rajasthan)

घोसुण्डी शिलालेख - नगरी चितौड़ के निकट घोसुण्डी गाॅंव में प्राप्त। इसमें ब्राह्मी लिपि में संस्कृत भाषा में द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व के गजवंश के सर्वदाता द्वारा अश्वमेघ यज्ञ करने एवं चारदीवारी बनाने को उल्लेख है।

नाथ प्रशस्ति - 971 ई. का यह लेख एकलिंगजी के मंदिर के पास लकुलीश मंदिर से प्राप्त हुआ है। इसमें नागदा नगर एवं बापा, गुहिल तथा नरवाहन राजाओं का वर्णन है।

हर्षनाथ की प्रशस्ति - हर्षनाथ (सीकर) के मंदिर की यह प्रशस्ति 973 ई. की है। इसमें मंदिर का निर्माण अल्लट द्वारा किये जाने का उल्लेख है। इसमें चैहानों के वंशक्रम का उल्लेख है।

आर्थूणा के शिव मंदिर की प्रशस्ति - आर्थूणा बाॅंसवाड़ा के शिवालय में उत्कीर्ण 1079 ई. के इस अभिलेख में बागड़ के परमार नरेशों का अच्छा वर्णन है। 

किराडू का लेख - किराडू बाड़मेर के शिवमंदिर में संस्कृत में 1161 ई. का उत्कीर्ण लेख जिसमें वहाॅं की परमार शाखा का वंशक्रम दिया है। इसमें परमारों की उत्पति श्रषि वशिष्ठ के आबू यज्ञ से बताई गई है।

बिजौलिया शिलालेख - बिजौलिया के पार्श्वनाथ मंदिर के पास एक चट्टान पर उत्कीर्ण 1170 ई. का यह शिलालेख जैन श्रावक लोलाक द्वारा मंदिर के निर्माण की स्मृति में बनवाया गया था। इसमें सांभर व अजमेर के चैहानों को वत्सगौत्रीय ब्राहम्ण बताते हुए उनकी वंशावली दी गई है। इसका रचयिता गुणभद्र था। इस लेख में उस समय के क्षेत्रों के प्राचीन नाम भी दिये गये है।

सच्चिया माता मंदिर की प्रशस्ति - ओसियाॅं जोधपुर में सच्चिया माता के मंदिर में उत्कीर्ण इस लेख में कल्हण एवं कीर्तिपाल का वर्णन है।

लूणवसही व नेमिनाथ मंदिर की प्रशस्ति - माउण्ट आबू के इन प्रसिद्व जैन मंदिरों में इनके निर्माता वस्तुपाल, तेजपाल तथा आबू के परमार वंशीय शासकों की वंशावली दी हुई है। यह प्रशस्ति उस समय के जनसमुदाय की विघानिष्ठा, दान-परायणता एवं धर्मनिष्ठा की भावना का अच्छा वर्णन करती है।

चीरवा का शिलालेख - चीरवा उदयपुर के एक मंदिर के बाहरी द्वार पर उत्कीर्ण 1273 ई. का यह शिलालेख बापा रावल के वंशजों की कीर्ति का वर्णन करता है।

जैन का किर्तिस्तंभ के लेख - चितौड़ के जैन कीर्ति स्तम्भ में उत्कीर्ण तीन अभिलेखों का स्थापनकर्ता जीजा था। इसमें जीजा के वंश, मंदिर निर्माण एवं दानों का वर्णन मिलता है। ये 13 वी सदी के है।

रणकपुर प्रशस्ति - रणकपुर के चौमुखा मंदिर के स्तंभ पर उत्कीर्ण यह प्रशस्ति 1439 ई. की है। इसमें मेवाड़ के राजवंश धरणक सेठ के वंश एवं उसके शिल्पी का परिचय दिया गया है। इसमें बापा एवं कालभोज को अलग-अलग व्यक्ति बताया गया है। इसमें महाराणा कुंभा की विजयों एवं विरूदों का पूरा वर्णन है।

कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति - यह विजय स्तंभ में संस्कृत भाषा में कई शिलाओं पर कुंभा के समय दिसम्बर 1460 ई. में उत्कीर्ण की गई है। अब केवल दो ही शिलाएॅं उपलब्ध है। इस प्रशस्ति में बापा से लेकर कुंभा तक की विस्तृत वंशावली एवं उनकी उपलब्धियों का वर्णन है। इसके प्रशस्तिकार महेश भट्ट है।

कुम्भलगढ़ का शिलालेख- यह 5 शिलाओं पर उत्कीर्ण था जो कुम्भश्याम मंदिर कुंभलगढ़, जिसे अब मामदेव मंदिर कहते है, में लगाई हुई थी। इसके राज वर्णन में गुहिल वंश का विवरण एवं शासकों की उपलब्धियों का वर्णन मिलता है। इसमें बापा रावल को विप्रवंशीय बताया गया है। रचियताः कवि महेश।

एकलिंगजी के मंदिर की दक्षिण द्वार की प्रशस्ति - यह महाराणा रायमल द्वारा मंदिर के जीर्णोद्वारा के समय मार्च, 1488 ई. उत्कीर्ण की गई है। इसमें भी मेवाड़ के शासकों की वंशावली, तत्कालीन समाज की आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक स्थिति व नैतिक स्तर की जानकारी दी गई है। इसके रचियता महेश भट्ट है।

रायसिंह प्रशस्ति (जूनागढ़ प्रशस्ति) - बीकानेर नरेश रायसिंह द्वारा जूनागढ़ दुर्ग में स्थापित की गई प्रशस्ति जिसमें दुर्ग के निर्माण की तिथि तथा राव बीका से लेकर राव रायसिंह तक के शासकों की उपलब्धियों का वर्णन है। इसके रचियता जइता नामक जैन मूनि थे। यह संस्कृत भाषा में है।

जगन्नाथ राय प्रशस्ति - यह उदयपुर के जगन्नाथ मंदिर में काले पत्थर पर मई, 1652 में उत्कीर्ण की गई थी। इसमें बापा से सांगा तक की उपलब्धियों, हल्दीघाटी युद्व, कर्ण के समय सिरोंज के विनाष के वर्णन के अलावा महाराणा जगतसिंह के युद्वों एवं पुण्य कार्यो का विस्तृत विवेचन है। प्रशस्ति के रचयिता कृष्णभट्ट है।

राज प्रशस्ति - राजसमन्द झील की नौ चौकी पाल की ताकों में लगी 25 काले पाषाणों पर संस्कृत में उत्कीर्ण यह प्रशस्ति 1676 ई. में महाराजा राजसिंह द्वारा स्थापित कराई गई। यह पघमय है। इसके रचयिता रणछोड़ भट्ट तैलंग थे। इसमें बापा से लेकर जगतसिंह - राजसिंह तक के शासकों की वंशावली व उपलब्धियों तथा महाराणा अमरसिंह द्वारा मुगलों से की गई संधि का उल्लेख है।

वैघनाथ मंदिर की प्रशस्ति- पिछोला झील उदयपुर के निकट सीसारमा गाॅंव के वैघनाथ मंदिर में स्थित महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय यह प्रशस्ति 1719 ई. की है। इसमें बापा के हारीत ऋषि की कृपा से राज्य प्राप्ति का उल्लेख है तथा बापा से लेकर संग्रामसिंह-द्वितीय जिसने यह मंदिर बनवाया था

विभिन्न रियासतों में प्रचलित सिक्के।
1. विजयशाही, भीमशाही  -  जोधपुर
2. गजशाही  -  बीकानेर
3. गुमानशाही  -  कोटा
4. झाड़शाही  -  जयपुर
5. उदयशाही  -  डूॅंगरपुर
6. मदनशाही  -  झालावाड़
7. स्वरूपशाही, चाॅंदोड़ी  -  मेवाड़
8. तमंचाशाही - धौलपुर
9. रावशाही  -  अलवर
10. रामशाही  -  बूॅंदी
11. अखैशाही  -  जैसलमेर
12. सालिमशाही  -  बाॅंसवाड़ा

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